Biography of Swami Vivekananda स्वामी विवेकानन्द का जीवनी हिन्दी
Biography of Swami Vivekananda
जन्म 12 जनवरी 1863 मकर संक्रांति 1920 सम्वंत कलकत्ता ( वर्तमान में कोलकाता )
मृत्यु 4 जुलाई 1902 ( 39 साल की अवस्था में ) बेलूर मठ, बंगाल
रियासत (ब्रिटिस राज ) वर्तमान में बेलूर पश्चिम बंगाल में है
बचपन का नाम वीरेश्वर , लेकिन ओपचारिक नाम नरेन्द् दत्त
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पिता विश्वनाथ दत्त
दादा दुर्गाचरण दत्त ( संस्कृत और फारसी के महाजानकर थे ) ने 25 साल में अपना गृह त्याग कर साधू बन गये थे और स्वामी विवेकानन्द ने भी 25 वर्ष की आयु में गेरुआ वस्त्र धारण कर पुरे भारत की पैदल यात्रा पर निकल गये थे ।
भाई – बहन 9
प्रारंभिक विधालय ईश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट , कोलकाता
कॉलेज प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी. कोलकाता
प्रमुख कथन “उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए”
गुरु रामकृष्ण परमहंस
घर्म हिन्दू
संस्थापक रामकृष्ण मिशन (1 मई 1897 इसका मुख्यालय कोलकाता के पास बेलूर में है) ।
वेदांत सोसाईटी (न्यूयॉर्क शहर वेदांत सोसाइटी जिससे 1898 में स्थापित किया गया था संयुक्त राज्य अमेरिका में रामकृष्ण मिशन की सबसे पुरानी शाखा है ) ।
स्वामी विवेकानन्द का संक्षिप्त परिचय
Biography of Swami Vivekananda
स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था । इनका जन्म 12 जनवरी 1863 में कलकत्ता में हुआ था जो कि अब कोलकाता के नाम से जाना जाता है । इनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 बेलूर मठ बंगाल रियासत जो कि अब पश्चिम बंगाल में है हुआ था । इनके गुरु या शिक्षक का नाम रामकृष्ण परमहंस था । इनका एक कथन जो की विश्वविख्यात है “उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए । ”उनके बचपन में घर का नाम वीरेश्वर रखा गया था लेकिन ओपचारिक नाम नारेंद्रदत्त था । स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे । इनकी मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो कि धार्मिक विचारों की महिला थी और उनका ज्यादा समय भगवान शिव की पूजा अर्चना में व्यतीत होता था । बचपन से ही स्वामी विवेकानंद अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के थे साथ ही साथ अन्य बच्चों की तरह वह नटखट भी थे ।
चुकी इनकी माता भुवनेश्वरी देवी काफी धार्मिक विचारों की महिला थी इसीलिए इनके घर में नियम पूर्वक रोज पूजा-पाठ भजन कीर्तन होता रहता था । परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण का प्रभाव स्वामी विवेकानंद के कोमल मन पर परा और बचपन से ही उनके मन में ईश्वर को जानने और उन्हें प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी । ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता उनकी इतनी बढ़ गई थी कि कभी-कभी वह अपने माता-पिता , गुरुजन , पंडित से ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे जिनका उत्तर उन लोगों के पास नहीं होता था । Biography of Swami Vivekananda
सन 1884 में अचानक स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई जिसके कारण घर का पूरा भार स्वामी विवेकानंद पर पर आ गया घर की दशा बहुत ही खराब हो चुकी थी अब स्वामी विवेकानन्द अपने घर को संभाले में लग गये थे लेकिन उनके मन से भगवन को जानने की लालसा समाप्त नही हुई इसी दौरान स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस की के बारे में जानकारी मिली । रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर पहले तो उनसे तर्क करने के विचार से गए थे लेकिन जैसे ही रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को देखा वह उन्हें पहचान गए और धीरे-धीरे स्वामी विवेकानंद भी रामकृष्ण परमहंस की ओर आकर्षित होते चले गए और आगे चलकर दोनों में दोनों के बीच एक महान गुरु और शिष्य का रिश्ता बना । स्वामी विवेकानंद अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे । एक दिन अचानक स्वामी विवेकानंद को पता चला कि उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हो गया है जिसके कारण धीरे-धीरे स्वामी रामकृष्ण परमहंस काफी अशक्त हो गए और इस अवस्था में उन्हें काफी सेवा भाव की जरूरत पड़ने लगी । तब स्वामी विवेकानंद । Biography of Swami Vivekananda
Biography of Swami Vivekananda। स्वामी विवेकानन्द का जीवनी हिन्दी
ने अपने परिवार की परवाह किए बिना स्वयं को गुरुदेव को समर्पित कर दिए और कैंसर के कारण उनके गले से जो रक्त, कफ , थुक निकलता था उसकी सफाई वह स्वयं अपने हाथों से करते थे । क्योंकि एक बार स्वामी विवेकानंद ने देखा कि उनके गुरु भाई गुरु का रक्त को उठाने में आनाकानी कर रहे थे । ये बात स्वामी विवेकानन्द को अच्छी नही लगी और उस दिन से वे खुद ही आपने गुरु की सेवा में लग गये । रामकृष्ण कि मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानन्द भारत भ्रमण पर निकल गये और अपने देश को अच्छी तरह से समझने की कोशिश की । 1893 ई० में शिकागो अमेरिका में विश्व धर्म परिषद हो रहा था हो रही थी जिसमें स्वामी विवेकानंद भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे थे । चुकी उस समय भारतीयों का बिदेशो में कोई अस्तित्व नही था इसलिए पहले तो स्वामीजी को बोलने का मौका नही दिया गया । काफी प्रयास करने के बाद स्वामी विवेकानंद को अपने विचार व्यक्त करने के लिए थोड़ा समय मिला लेकिन उनके विचार को सुनकर वहां मौजूद सभी विद्वान चकित हो गए उसके बाद स्वामी विवेकानंद 3 वर्ष तक अमेरिका में रहे और वहां पर भारतीय तत्वज्ञान की ज्योति प्रदान करते रहे । उस धर्म सभा में उनके द्वारा बोला गया पहला शब्द था “ प्रिय भाईयों और बहनों “ था । ये शब्द वहा मौजूद सभी लोगों का दिल जीत लिया था । Biography of Swami Vivekananda
https://en.wikipedia.org/wiki/Swami_Vivekananda
स्वामी विवेकानन्द का शिक्षा
ऐसे तो बचपन से स्वामी विवेकानंद को उनकी माता भुवनेश्वरी देवी खुद ही पढ़ाती थी साथ ही साथ उनके लिए कुछ शिक्षक भी नियुक्त किए गए थे । क्योंकि बचपन में जब एक बार स्वामी विवेकानंद स्कूल गए थे तो वहां से लौटने के बाद उन्होंने कुछ अपशब्दो का प्रयोग किया था जिसके कारण उनका स्कूल जाना बंद कर दिया गया था । फिर 1871 ईस्वी में स्वामी विवेकानंद ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर स्कूल में दाखिला लिया और 1879 में कोलकाता में वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन प्राप्त किया था । वह दर्शन , धर्म , इतिहास और सामाजिक विज्ञान आदि कई विषयों को बहुत रूचि के साथ पढ़ते थे । स्वामी विवेकानंद को वेद उपनिषद रामायण गीता आदि शास्त्रों में गहन रुचि थी । Biography of Swami Vivekananda
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स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन
- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य ही होगा
- दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो
- एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते
- एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारों बार ठोकर खाने के बाद ही होता है
- महात्मा वह है जो गरीबों और असहाय के लिए रोता है अन्यथा वह दुरात्मा है
- खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है
- चिंतन करो चिंता नहीं नए विचारों को जन्म दो
स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित पुस्तक
ऐसे तो स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित बहुत सी पुस्तकें हैं लेकिन उनमें से कुछ प्रमुख पुस्तकों का नाम है
- राजयोग,
- कर्म योग,
- भक्ति योग,
- ज्ञान योग,
- माय मास्टर,
- लेक्चरर्स फ्रॉम कोलंबो टो अल्मोड़ा
Biography of Swami Vivekananda
स्वामी विवेकानन्द का मृत्यु
अस्पताल में लोन पे इलाज कैसे कराएं। How to Take Loan in Hospitals with out Interest
स्वामी जी को बहुत कम उम्र में बहुत सी बीमारियाँ हो गई थी । बांग्ला के बहुत प्रसिद्ध लेखक मणिशंकर मुखर्जी कहते है की स्वामी जी को कुल ३१ बीमारियाँ थी जिसमे शुगर भी था । जब स्वामी विवेकानंद की मृत्यु नजदीक थे तो उन्होंने कहा था , एक और विवेकानंद चाहिए यह समझाने के लिए कि इस विवेकानंद ने अब तक क्या किया है । 4 जुलाई 1902 को जब स्वामी विवेकानंद ने महासमाधि लिया तो उनके शिष्यों का कहना था कि उस दिन भी स्वामी विवेकानंद की दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं था उन्होंने दो-तीन घंटे ध्यान किया और ध्यान अवस्था में ही महासमाधि ले ली । बेलूर में गंगा तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया इसी गंगा तट के दूसरी और 16 वर्ष पहले उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का भी अंतिम संस्कार हुआ था । Biography of Swami Vivekananda
स्वामी विवेकानन्द का फिल्म Biography of Swami Vivekananda
ऐसे तो स्वामी विवेकानंद की जीवनी पर बहुत सारे फिल्में बनाई गई हैं लेकिन 1998 में उनकी बायोपिक बनाई गई थी जिसका नाम भी रखा गया था स्वामी विवेकानंद । इस फिल्म को अभी तक की बेस्ट फिल्म मानी गई है । इस फिल्म के एक्टर मिथुन चक्रवर्ती को इसके लिए नेशनल अवार्ड भी दिया गया था । Biography of Swami Vivekananda
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