Swami Vivekananda
स्वामी विवेकानंद
swami vivekananda biography from birth to death |
Swami Vivekananda: स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे श्री राम कृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्होंने 2 मिनट के समय में अमेरिका में भाषण देकर सबका दिल जीत लिया था। आज 12 जनवरी है ,आज उनका जन्मदिवस है। उनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनका जन्म सन 12 जनवरी 1863 ईस्वी में हुआ था और मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन 1893 में आयोजित विश्व धर्म सभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आधुनिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर देश में स्वामी विवेकानंद के अच्छे वक्ता होने के कारण हुआ था।
उनका जन्म कोलकाता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। वह अपने गुरु श्री राम कृष्ण परमहंस देव जी से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्हें बहुत कुछ सीखा और सारे जो में स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व है ऐसा मानते थे इसलिए मानव जाति जो मनुष्य दूसरे जरूरतमंदों की मदद करता है या सेवा द्वारा परमात्मा की सेवा की जा सकती है।रामकृष्ण देव जी की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की और ब्रिटिश भारत में तत्कालीन स्थितियों की प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका इंग्लैंड और यूरोप में दश हिंदू दर्शन के लिए सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्यवधानों का आयोजन किया। भारत में स्वामी विवेकानंद को एक देशभक्त सन्यासी के रूप में जाना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है वह रामकृष्ण परमहंस के सहयोग के शिष्य थे। उन्हें उन्होंने 2 मिनट के समय में अमेरिका में भाषण देकर सबका दिल जीत लिया था। उनके संबोधन में इस प्रथम वाक्य से सबका दिल जीत लिया था वह प्रथम वाक्य था मेरे प्रिय अमेरिका भाई के भाइयों और बहनों वह भी उसे जमाने में इंग्लिश में।
Swami Vivekananda से जुड़ी बहुत सारी कहानी है एक कहानी यह भी है कि एक बार स्वामी विवेकानंद अपने आश्रम में सो रहे थे कि तभी एक व्यक्ति उनके पास आया जो बहुत दुखी था और आते ही स्वामी विवेकानंद के चरणों पर गिर पड़ा बोला महाराज मैं अपने जीवन में खूब मेहनत करता हूं हर काम खूब मन कर भी करता हूं इस पर भी आज मैं सफल व्यक्ति नहीं बन पाया। उसे व्यक्ति की बातें सुनकर स्वामी विवेकानंद ने कहा ठीक है आप मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर तक घूम कर ले तब तक आपकी समस्या का समाधान ढूंढता हूं। इतना कहने के बाद वह व्यक्ति कुत्ते को घूमने के लिए चला गया और फिर कुछ समय बीतने के बाद व्यक्ति वापस आया तो स्वामी विवेकानंद ने उसे व्यक्ति से पूछा यह कुत्ता इतना हाफ क्यों रहा है क्योंकि तुम थोड़े से भी थके हुए नहीं लग रहे हो आखिर ऐसा क्या हुआ। उसे व्यक्ति ने कहा कि मैं तो सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था जबकि कुत्ता इधर-उधर रास्ते में भाग रहा था कुछ भी देखा तो इधर-उधर दौड़ जाता इसके कारण वह इतना थक गया है।
इस पर Swami Vivekananda ने मुस्कुराते हुए कहा बस यही तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है तुम्हारी सफलता की मंजिल तो तुम्हारे सामने ही होती है लेकिन तुम अपने मंजिल के बजाय इधर-उधर भागते हो जिससे तुम अपने जीवन में काफी सफल नहीं हो पाए यह बात सुनकर उसे व्यक्ति को समझ में नहीं समझ में आ गया था यदि सफल होना तो अपने मंजिल को ध्यान में रखना होगा।स्वामी विवेकानंद की छाती देश-विदेश में फैली हुई थी एक बार की बात है विवेकानंद समारोह के लिए विदेश गए थे और उनके समझ में कुछ विदेशी लोग आए हुए थे उनके द्वारा दिए गए स्पीच के में से एक विदेशी महिला बहुत ही प्रभावित हुई और वह विवेकानंद के पास आई और स्वामी विवेकानंद से बोली मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं ताकि आपके जैसा ही मुझे गौरवशाली पुत्र भी प्राप्त हो। इस पर स्वामी विवेकानंद बोले कि क्या आप जानती हैं मैं सन्यासी हूं भला मैं आज कैसे विवाह कर सकता हूं यदि आप चाहे तो मुझे अपना पुत्र बना लो इस पर मेरा संन्यास नहीं टूटेगा और आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा यह बात सुनते ही वह विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद को चरणों में गिर पड़े और बोली आप धन्य है आप ईश्वर के समान है जो किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होते हैं।
Swami Vivekananda
यदि Swami Vivekananda से जुड़ी दूसरी कहानी। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि सच्चा पुरुष वही है जो हर एक परिस्थिति में नारी का सम्मान करें। स्वामी विवेकानंद के बचपन के घर का नाम वीरेश्वर रखा गया था किंतु उनका औपचारिक नाम नरेंद्र नाथ था। पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। दुर्गा चरण दत्त नरेंद्र के दादा संस्कृति और फारसी के विद्वान थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा अर्चना में व्यतीत होता था। नरेंद्र के पिता धार्मिक प्रगतिशील वर्धन संगत रवैया से उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में सहायता की। बचपन में स्वामी विवेकानंद बहुत ही शरारती और कुशाग्र बुद्धि के थे। वे मौका मिलने पर अपने दोस्तों से शरारत तथा शिक्षकों शिक्षकों से भी शरारत किया करते थे।उनके घर में नियम पूर्वक रोज पूजा पाठ होता था धार्मिक प्रवृत्ति का का होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी पुराण रामायण महाभारत आदि की कथा सुनने का शौक रखती थी। कथावाचक बराबर उनके घर आते रहते थे नियमित रूप से भजन कीर्तन भी होते रहते थे।परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेंद्र के मन में बचपन से ही धर्म और आध्यात्मिक के संस्कार गहरे होते गए। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी।
ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता में कभी-कभी वैसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि उनके माता-पिता और कथा वाचक पंडित भी चक्कर में पड़ जाते थे। सन 1871 में 8 साल की उम्र में नरेंद्र नाथ ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्था में दाखिला लिया जहां वे स्कूल गए 1877 में परिवार रायपुर चला गया 1879 में कोलकाता में अपने परिवार की वापसी के बाद वह एक मां एक छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन प्राप्त किया था। की दर्शन धर्म इतिहास सामाजिक विज्ञान कला और साहित्य विषय में उत्साही पाठक थे। उनकी वेद उपनिषद भागवत गीता रामायण महाभारत और पुराणों में अतिरिक्त अनेक हिंदू शास्त्रों में गहन रुचि थी।1880 में नरेंद्र इसी से हिंदू धर्म में रामकृष्ण के प्रभाव से परिवर्तित केशव चंद्र सेन के नाम विधान में शामिल हुए नरेंद्र 1884 से पहले कुछ बिंदु पर एक फ्री मशीनरी लॉज और साधारण ब्रह्म समाज से ब्रह्म समाज का ही एक अलग अच्छा था जो केशव चंद्र सेन और देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व था। 1881 से 1884 के दौरान यह सेंस बंद ऑफ होप में भी सक्रिय रहे जो धूम्रपान और शराब पीने के युवाओं को हतोत्साहित करता था। यह नरेंद्र के परिवेश के कारण पश्चिमी अधिवक्ता आधुनिकता के साथ परिचित हो गया था उनके प्रारंभिक विश्वासों को ब्रह्म समाज ने जो एक निराकार ईश्वर में विश्वास और मूर्ति पूजा का प्रतिवाद करता था ने प्रभावित किया।
एक बार किसी शिष्य ने गुरुदेव की सेवा में से घृणा या निष्क्रियता दिखाते हुए नाक बहुत सिकुड़ने लगा यह देखकर विवेकानंद को क्रोध आ गया वह अपने इस गुरु भाई को सेवा का पाठ पढ़ते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति भाग प्रेमधर जाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त और कफ आदि से भरी थुकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरु के प्रति ऐसी अन्य व्यक्ति और निष्ठा से प्रताप से ही वह अपने गुरु और शिष्य शरीर के शरीर और दिव्यतम आदर्श का उत्तम सेवा कर सके। Swami Vivekananda बड़े ही स्पष्ट वक्ता थे। उन्होंने ऐसे समाज की कल्पना की थी जिससे कि धर्म व जाति के आधार पर मनुष्य मनुष्य का भी भेद न रहे। उन्होंने वेदांत के सिद्धांतों को इस रूप में रखा था कि आध्यात्मिक वाद बना भौतिकवाद के विवाद से पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है की क्षमता सेल के सिद्धांत का जो आधार विवेकानंद ने दिया उसमें सफल बौद्धिक बौद्धिक आधार शायद ही ढूंढा जा सके।विवेकानंद को युवकों से बड़ी आशाएं थी। आज के युवकों के लिए इसी ओजस्वी सन्यासी का जीवन एक आदर्श है। उनके नाना का नाम श्री नंदलाल बसु था। 25 वर्ष की अवस्था में नरेंद्र ने ग्रेड हुआ वस्त्र धारण किया था। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की विवेकानंद ने 31 में 1893 को अपनी यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों का दौरा किया चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो तक पहुंचे सन 1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद हो रही थी।
स्वामी विवेकानंद उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे यूरोप अमेरिका के लोग उसे समय पराधीन भारतवासी को हिंद दृष्टि से देखते थे ।वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद सर्वधर्म परिषद मैं बोलने का समय ही ना मिले परंतु एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला उसे परिषद में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए फिर तो अमेरिका ने उनका अध्यक्ष अत्यधिक स्वागत हुआ।वहां उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया। 3 वर्ष के 3 वर्ष में अमेरिका में रहे और वहां के लोगों को भारतीय तत्व ज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। उनके व्यक्तित्व शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहां की मीडिया ने उन्हें साइक्लोनिक हिंदू का नाम दिया।आध्यात्मिक विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्वनाथ हो जाएगा यह स्वामी विवेकानंद का दृढ़ विश्वास था। अमेरिका में उन्होंने परम स्वामी परमहंस मिशन के अनेक शाखाएं स्थापित की अनेक अमेरिकी विद्वानों ने उनका शिक्षक ग्रहण किया। वे सदा अपने को गरीबों के सेवक कहते थे।
swami vivekanand Important truths (स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन) |
स्वामी विवेकानंद के कुछ अनमोल वचन है –
उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक की तुम्हारे लक्ष्य प्राप्त हो जाए।
हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है।
एक विचार लें और इसी से ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें।
एक समय में एक ही कम करो ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो बाकी सब कुछ भूल जाओ।
पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
एक अच्छे चरित्र का निर्माण हज़ारों बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
सत्य को हजार तर्कों से बताया जा सकता है फिर भी वह सत्य ही होगा।
बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा स्वरूप है।
विश्व एक विशाल व्यायाम शाला है जहां मैं खुद को मजबूत बनाने के लिए आज हम आते हैं।
शक्ति जीवन है निर्बलता मृत्यु है।
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक भगवान आप पर विश्वास नहीं करेगा।
जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है शारीरिक बॉडी क्या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था चिंतन करो चिंता नहीं नए विचारों को जन्म दो।
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FAQ
Q. स्वामी विवेकानंद का सिद्धांत क्या है?
Ans. विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका इंग्लैंड और यूरोप में दश हिंदू दर्शन के लिए सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्यवधानों का आयोजन किया।