History of Samrat Ashok । Biography of Samrat Ashok। सम्राट अशोक का इतिहास ,जीवन परिचय
सम्राट अशोक का जीवन परिचय : History of Samrat Ashok :

History of Samrat Ashok : अगर आप इतिहास पढ़ना शुरू किए हैं और आप मौर्य वंश के बारे में ना सुने हो ऐसा तो संभव ही नहीं है ऐसे तो मौर्य वंश के हर राजा अपने आप में महान थे। लेकिन उन सभी में अगर हम बात करें उनमें से एक महान शासक या कहे राजा की तो वो थे।
राजा अशोक जिन्हे सम्राट की उपाधि दी गई है। और हम अशोक को सम्राट अशोक के नाम से जानते हैं सम्राट अशोक का पूरा नाम देवा नाम प्रिय अशोक था
इसका अर्थ होता है राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय आप सम्राट अशोक की शक्ति का पता या उनके महानता का पता इस बात से लगा सकते हैं कि सम्राट अशोक का साम्राज्य आज पूरा भारत पाकिस्तान अफगानिस्तान नेपाल बांग्लादेश भूटान मयमार के लगभग अधिकांश जमीन पर था ।
सम्राट अशोक को भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के सभी महान और शक्तिशाली सम्राटों और राजाओं की पंक्ति में हमेशा सर्वोच्च स्थान मिला है इसलिए हम कह सकते हैं कि अशोक सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के महान राजा में से एक थे जिस कारण अशोक को चक्रवर्ती सम्राट अशोक कहा जाता है आपको पता होगा चक्रवर्ती का अर्थ होता है
सम्राटों के सम्राट जाने की राजाओं के राजा और अगर हम बात कर रहे हो सम्राट अशोक की और उसमें बौद्ध धर्म का नाम ना आए ऐसा संभव ही नहीं सम्राट अशोक को जितना एक शक्तिशाली राजा के रूप में याद किया जाता है उतना ही ज्यादा बौद्ध धर्म के प्रचार करने के लिए भी और बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाने के लिए भी हम लोग सम्राट अशोक को याद करते हैं क्योंकि सम्राट अशोक ने सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में साथ ही साथ लगभग सभी महाद्वीप में बौद्ध धर्म का प्रचार किया था । History of Samrat Ashok
जिसका सबूत आज अलग-अलग देश में सम्राट अशोक के स्तंभ और शिलालेख के रूप में मिलते रहते हैं जिनमें से कुछ को पढ़ा जा चुका है और कुछ को पर पाना अभी बाकी है सम्राट अशोक इतने महान शासक थे जो आज तक एक भी युद्ध नहीं आ रहे थे हमें अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं आ रहे थे लेकिन जबसे उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया था तब से वह किसी भी युद्धमें भाग नहीं लिया था । History of Samrat Ashok
उन्होंने अपना पूरा जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार में लगा दिया उस समय सम्राट अशोक के द्वारा 23 विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी जिनमें प्रमुख थे तक्षशिला, विक्रमशिला, कंधार और नालंदा कि वह विश्वविद्यालय थे जिसमें देश ही नहीं बल्कि विदेश के छात्र और छात्राएं शिक्षा ग्रहण के लिए आते थे अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका तक भेज दिया था । History of Samrat Ashok
( सम्राट अशोक जन्म तिथि ) Samrat Ashoka date of birth
नाम | चक्रवर्ती सम्राट अशोक |
जन्म | ३०४ ईसापूर्व |
स्थान | पाटलिपुत्र , पटना |
पिता | बिन्दुसार |
माता | सुभद्रांगी |
( सम्राट अशोक का शुरुआती जीवन) Ashoka early life
अगर हम सम्राट अशोक के शुरुआती जीवन की बात करें तो उनका जीवन काफी कष्टों से भरा रहा ऐसे कहने को तो वह सम्राट बिंदुसार और रानी धर्मा के पुत्र थे । लेकिन कई किताबों में यह उल्लेख मिलता है की अशोक के पूरे पूरे 100 या 101 भाई थे और उनकी माता जिनका नाम धर्मा था और बहुत सारे ग्रंथों में उनका नाम शुभ घांग्री भी दिखाया जाता है उनका कोई राजकुल नहीं था ।
वह छत्रिय नहीं थी इसलिए अशोक को वह दर्जा नहीं मिलता है जो एक राजकुमार को मिलना चाहिए था और चुके उससे पहले बिंदुसार की और भी शादियां थी तो उनसे उनके और भी बच्चे थे जिनके कारण बचपन से ही उत्सवों में बहुत ही ज्यादा प्रतिस्पर्धा रहती थी सारे भाई का तो उल्लेख किसी भी पुस्तक में नहीं है मुख्य रूप से तीन भाई का उल्लेख हर जगह देखने को मिलता है जिनमें सबसे बड़ा भाई जिसका नाम था सुशील उसके बाद अशोक और सबसे छोटे का नाम था।
इससे और अशोक सहोदर भाई थे और सुशील सौतेले लेकिन अशोक बचपन से ही सैन्य गतिविधियों में कुशल थे जिसके कारण वह अक्सर राजा बिंदुसार की नजरों में बने रहते थे और प्रजा उन्हें भावी राजा के रूप में देखती थी । History of Samrat Ashok
(सम्राट अशोक प्रसिद्धि कैसे मिला )
अशोक को अपने शुरुआती जीवन में अगर सबसे ज्यादा किसी से समस्या हुई तो वह था उनका बड़ा भाई सुशील चुके बड़ा होने के नाते सुशील को उस समय तक्षशिला का प्रांत पाल नियुक्त किया गया था ।
बेमिसाल के द्वारा और उस समय तक्षशिला में भारतीय यूनानी मूल के बहुत लोग रहते थे जिस कारण अक्सर वहां पर विद्रोह होने का डर बना रहता था और यह हुआ भी क्योंकि सुशील एक अकुशल शासक था । History of Samrat Ashok
वह तक्षशिला का प्रशासन सही से नहीं संभाल पा रहा था विद्रोह जब बहुत ज्यादा भड़क उठा तो सुशील के कहने पर राजा बिंदुसार ने सम्राट अशोक को तक्षशिला भेजा तक्षशिला में विद्रोही को जैसे ही यह पता चला कि सम्राट अशोक आ रहे हैं सारे विद्रोही डर के वहां से भाग गए अब राजा बिंदुसार और प्रजा के बीच में अशोक का प्रसिद्धि और भी बढ़ गया और इसका डर सुशील को सताने लगा क्योंकि बड़ा बेटा होने के नाते राजगद्दी सुसीम को मिलनी चाहिए थी ।
लेकिन सम्राट अशोक सुशील के सामने काफी योग्य और कुशल दावेदार थे इसलिए सुशील को लगने लगा कि अब मेरे हाथ से राजगद्दी जा सकती है इसलिए वह अशोक को मरवाने की हर संभव प्रयास करने लगा।
चुकी सुशील बिंदुसार का सबसे बड़ा बेटा था इसलिए बिंदुसार का सिम के प्रति लगाव ज्यादा था इसीलिए तक्षशिला में जब सम्राट अशोक का प्रसिद्धि फैलने लगा तो सुशील के कहने या कहें भड़काने पर बिंदुसार ने अशोक को निर्वात में भेज दिया था ।
और अशोक वहां से कलिंग चले गए वहां पर वहां की राजकुमारी और वकील से अशोक को प्रेम हो गया और बाद में अशोक ने उनसे शादी कर ली इसी बीच क्या होता है उज्जैन में विद्रोह भड़क उठता है बिंदुसार के पास कोई भी विकल्प नहीं बचा और अंत में उन्हें फिर से अशोक को बुलाना पड़ा और अशोक अपने पिता की आज्ञा पाकर वापस आ गए थे ।
लेकिन बिंदुसार को कुछ-कुछ गुप्त चरो के द्वारा यह बताया गया की अशोक की जान खतरे में है सुशील के द्वारा उनको मरवाया जा सकता है इसलिए अशोक बौद्ध सन्यासियों के साथ है रहे और वहां पर रहने के कारण ही अशोक का जो रुझान है वह बौद्ध धर्म की तरफ होने लगा क्योंकि अशोक के पिता बिंदुसार और अशोक के दादाजी चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म को मानते थे। History of Samrat Ashok
लेकिन बौद्ध सन्यासियों के साथ रहते रहते अशोक वहां के विधि विधान वहां के नियम कानून गौतम बुद्ध के उपदेश आदि के बारे में जानने लगे और धीरे-धीरे उससे प्रभावित होने लगे वहीं पर उनकी मुलाकात एक देवी नाम की लड़की से होता है जिससे अशोक को प्रेम हो जाता है और बाद में अशोक उनसे शादी कर लेते हैं कुछ समय बाद सुशील की निरंकुशता से प्रजा परेशान हो चुकी थी और प्रजा बार-बार अशोक से राजा बनने की गुहार लगाने लगे कहा जाता है एक समय जब सम्राट अशोक आश्रम में थे ।
उनको समाचार मिला उनको यह पता चला कि उनके भाइयों ने यानी कि सौतेले भाइयों ने उनकी माता को मार दिया है तब गुस्से में आकर के सम्राट अशोक अपने राजभवन आए और वहां पर उन्होंने अपने 99 भाइयों की हत्या कर दी जिसके बाद वह राजा बने । History of Samrat Ashok
( सम्राट अशोक द्वारा कलिंग का युद्ध)
अपने भाइयों की हत्या करने के बाद भी सम्राट अशोक को आंतरिक अशांति को निपटाने में काफी समय लग गया और पूरी विधि विधान के साथ सम्राट अशोक का राज्याभिषेक 200 69 ईशा पूर्व में किया गया था उसके बाद सम्राट अशोक का जीवन 8 वर्षों तक सामान्य राजा की तरह चलते रहा
लेकिन राज्य अभिषेक के 8 वर्ष के बाद एक युद्ध होता है जो सम्राट अशोक के जीवन को उनके व्यक्तित्व को उनके सोच को उनके विचार को पूरी तरह से बदल देता है और वह युद्ध था कलिंग का युद्ध
जैसा कि आप लोगों को पता है अशोक के द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख उनके शिलालेख में और स्तंभ में मिलता है तो कलिंग युद्ध का उल्लेख उनके तेल में शिलालेख में मिलता है उस शिलालेख से यह पता चलता है कि कलिंग के युद्ध में डेढ़ लाख व्यक्ति को बंदी बनाकर निर्वासित कर दिया गया था ।
लगभग एक लाख लोगों की हत्या की गई थी और डेढ़ लाख लोग घायल हो गए थे कहा जाता है कि उस समय कलिंग में जब लोगों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था तो लोगों के जलने के कारण आसमान पूरा धूप की तरह रोशनी से खिल गया था यह नजारा सम्राट अशोक जब अपनी आंखों से देखते हैं तो वह पूरी तरीके से बेचैन होते हैं और वह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि आखिर ऐसे राज पाठ ऐसे शक्ति का क्या जिसके कारण इतने लोगों की बलि पड़ जाए और वह अपने एक बौद्ध भिक्षुक जिनका नाम उप गुप्त होता है ।
उनसे इनका इसका उपाय पूछते हैं और अंततः सम्राट अशोक पूरी तरह से बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लेते हैं और हम कह सकते हैं कि कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक के दिल में उनके व्यक्तित्व में एक महान परिवर्तन कर दिया था वह मानवता को समझने लगे थे मानवता के प्रति जो दया होती है जो करुणा होती है मानव का क्या उद्देश्य होता है इन भावनाओं को वह समझने लगे थे। History of Samrat Ashok
(सम्राट अशोक के जीवन में बदलाव कैसे आया )
अब जब भी कलिंग युद्ध का क्षति और नरसंहार का दृश्य सम्राट अशोक के मन में आता था वह पूरी तरीके से व्याकुल होते थे और अशोक और ग्लानि से भर जाते थे इसी सोकर ग्लानि से उबरने के लिए सम्राट अशोक बुद्ध के उपदेश सुनना शुरू किए और धीरे-धीरे उसके काफी नजदीक आ गए बौद्ध धर्म को स्वीकार करने के बाद उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह गया था । History of Samrat Ashok
(सम्राट अशोक के जीवन का अंतिम इच्छा)
उसे अपने जीवन में उतारना और उसके बाद सबसे पहले उन्होंने शिकार करना छोड़ दिया था युद्ध करना छोड़ दिया था वह सन्यासियों को दिल खोलकर दान देते थे लोगों के कल्याण के लिए बहुत सारे चिकित्सालय पाठशाला पियाउ सड़क आदि का निर्माण करवाया था और यह सोचकर जो पथिक दूर से आते हैं उन्हें गर्मी के समय में छाया मिलनी चाहिए तो उसके लिए रोड के दोनों किनारे पेड़ भी लगवाए गए थे । History of Samrat Ashok
उनका दूसरा उद्देश्य था बौद्ध धर्म का प्रचार करना इसके लिए उन्होंने अपने पुत्र और पुत्री पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बहुत सारी यात्राओं पर भेजे थे अगर इस यात्रा की सफलता की बात करें तो सबसे बड़ा सफलता सबसे अधिक सफलता उनके पुत्र महेंद्र को मिला जब वह श्रीलंका के राजा ने इनका नाम किससे था उनको बौद्ध धर्म में दीक्षित किए और राजा 30 से बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना लिए थे ।
Biography of Swami Vivekananda। स्वामी विवेकानन्द का जीवनी हिन्दी
आपको पता होगा अशोक के हिसा सन काल में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था और बौद्ध धर्म के तीन पुस्तक सूत पीटर्क विनय पिटक और अभिधान पिटक के बारे में तो आप जानते ही होंगे इसी तृतीय बौद्ध संगीति में अभिनव पिटक की रचना की गई थी अब सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए खुद धर्म यात्राओं पर निकल चुके थे ।
अपने राज्य अभिषेक के दसवें वर्ष वह बोधगया की यात्रा पर गए 20 वर्ष से लुंबिनी जहां गौतम बुद्ध का जन्म स्थल है वहां पर गए वहां पर उन्होंने कनक मुनि केतु की मरम्मत भी करवाई थी साथ ही साथ है अपने राज्य अभिषेक के 13 वर्ष से उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए एक नया वर्ग बनाया जिन्हें धर्म महामात्र कहा जाता था इस वर्ग के पदाधिकारियों का काम था कि वह अलग-अलग संप्रदायों के बीच भेदभाव को मिटा कर लोगों को आपस में लाएं एकता स्थापित करें।
( सम्राट अशोक का शिलालेख ) Ashoka india
अशोक के सम्राट अशोक के 33 अभिलेख अभी तक मिल चुके हैं जिसको स्तंभों चट्टानों गुफाओं की दीवारों इत्यादि पर लिखवाया गया था और इससे 200 69 ईसा पूर्व से लेकर 231 ईसा पूर्व तक जोकि सम्राट अशोक का शासनकाल था उस समय बनवाए गए थे या खुद बाय गए थे ।
अगर हम बात करें इन शिलालेखों की तो यह आधुनिक या कहें वर्तमान में बांग्लादेश भारत अफगानिस्तान पाकिस्तान नेपाल आदि देशों में हैं और इन शिलालेखों को पढ़कर बौद्ध धर्म के अस्तित्व का पता चलता है कि यह कितने प्राचीन धर्मो में से एक है अशोक के शिलालेख खरोष्ठी लिपि , आरमाइक लिपि , ग्रीक लिपि और ब्राह्मी लिपि में लिखे है आज हमलोग के पास अशोक के बारे में जितनी भी जानकारी है वो सब इन्ही शिलालेखो से प्राप्त हुआ है इन अभिलेखों को सबसे पहले जेम्स प्रिंसेप नामक बिद्वान १८३७ में पढ़ा था । History of Samrat Ashok
How did Ashoka die (मृत्यु)
लगभग ३६ वर्षो तक शाशन करने के बाद २३२ ईसापूर्व सम्राट अशोक की मृत्यु हुई । सम्राट अशोक के निधन के बाद ऐसे तो मौर्य साम्राज्य ५० वर्षो तक चला। इस तरह से हमारे देश के महान शासक का अंत हो गया लेकिन भारत को एक करने सम्राट अशोक बहुत योगदान भुलाया नहीं जा सकता है ।
early life of ashoka pdf
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